
कंधार अपहरण कांड में तत्कालीन अटल सरकार को घेरना क्या वाकई सही है?
पाकिस्तान पर एयरस्ट्राइक के बाद से आ रहे सर्वे में इस बात का लगातार जिक्र हो रहा है की पीएम मोदी की लोकप्रियता बढ़ी है.मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पहले से ही आतंकवाद के मुद्दे पर आलोचना का सामना करता रहा है.ऐसे में कांग्रेस ने बीजेपी को घेरने के लिए कंधार कांड का मुद्दा उठाया है.1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान में सवार भारतीय नागरिकों को बचाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने जैश ए मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर समेत 3 खूंखार आंतकियों को रिहा करने का फैसला किया था.उस वक्त विदेश मंत्री जसवंत सिंह खुद जहाज में खूंखार आतंकवादियों को बैठाकर कंधार छोड़ने गए थे.
राहुल गांधी अब इसे तत्कालीन बीजेपी सरकार की नाकामयाबी बताकर हमलावर हैं.सोमवार को वो बीजेपी पर हमला करते करते मसूद अजहर को जी लगाकर भी संबोधित कर गए.राहुल गांधी जो मुद्दा उठा रहे हैं क्या वाकई उस मुद्दे में दम है और ये बीजेपी की एक असफलता थी ? क्या उस वक्त अगर मसूद अजहर को छोड़ा न गया होता तो आज पुलवामा का हमला नहीं होता?
दूसरे सवाल का जवाब हां हो सकता है लेकिन पहले सवाल का जवाब क्या होगा.कुछ और सवाल और उनके जवाब इस मुद्दे पर आपकी राय आसान कर देंगे-
1.अमृतसर में अपहत विमान को क्यों नहीं रोका गया- इंडियन एयरलाइंस का विमान जब काठमांडू से भारत आया तब वो अमृतसर में रूका था.विमान को यहीं ईंधन भरना था.कुछ वक्त तक यहां रूकने के बाद विमान लाहौर के लिए रवाना हुआ.इसके बाद दुबई होते हुए कंधार चला गया.सवाल ये पैदा होता है की जब विमान अमृतसर में था उस वक्त भारत ने अटैक करके इसे क्यों नहीं मुक्त करवा लिया.वाकई भारत की सेना और सुरक्षाबलों पर ऐसी कार्रवाई कर सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.इस सवाल के जवाब के लिए हमें हालिया घटनाक्रम की तरफ देखना होगा.भारत ने पाकिस्तान पर एयरस्ट्राइक की.पाकिस्तान ने भी हमला किया.हमारा एक पायलट पकड़ा गया.उसके बाद जो देश आतंकवाद पर कार्रवाई की बात कर रहा था वो भयंकर सदमे में आ गया.लोगों ने सरकार को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया. सोचिए यहां एक पायलट की बात थी वहां तो 180 यात्रियों की जिंदगी का सवाल था.
हालांकि अगर बात सरकर के कड़े कदम उठाने की आती है तो सरकार के लिए अमृतसर से ज्यादा मुफीज जगह शायद ही होती.
2.आतंकवादियों को छोड़ना कितना सही था- उस वक्त जब आतंकियों ने विमान का अपहरण किया तो तीन मांगे रखीं थीं.
पहली मांग मसूद अजहर समेत 36 आतंकियों को रिहा करने की
दूसरी मांग 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर की फिरौती
तीसरी मांग एक अलगाववादी का शव सौंपे जाने की मांग
इस बीच जब विमान दुबई में उतरा तो ईंधन भरने की शर्त पर 27 यात्रियों को आतंकियों ने छोड़ा भी.एक महिला को बाहर आकर 90 मिनट के लिए इलाज कराने की अनुमति भी मिली.इसके बाद विमान कंधार चला गया.उस वक्त अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार थी.जो अपने आप में एक कट्टरपंथी समूह था.भारत और आतंकियों के बीच उस वक्त तालिबान ने मध्यस्थ की भूमिका अदा की थी.तालिबान की मध्यस्थता से आतंकी कई मांगों को छोड़ने पर तैयार हुए.भारत सरकार के क़ड़े एक्शन का डर और डिप्लोमेसी की इसमें अहम भूमिका थी.आतंकियों ने अपनी मांग 36 आतंकियों से घटाकर 3 कर दी थी और बाकी दोनों मांगो को छोड़ दिया था. NSA अजीत डोभाल उस वक्त IB के प्रमुख थे.हाल ही में आई मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने मसूद अजहर की रिहाई का विरोध किया था.उनका कहना था की थोड़ा सा और वक्त मिलने पर वो कम से कम नुकसान के साथ आतंकियों पर कार्रवाई कर सकते हैं.
सवाल यहां ये खड़ा होता है की कम से कम नुकसान में कौन कौन शामिल होता.उस वक्त अगवा लोगों के तमाम परिजन पीएम आवास के बाहर लगातार सरकार पर समझौते का दबाव बना रहे थे.मीडिया का भी रूख वही था.ऐसे में कौन सरकार इतना बड़ा रिस्क लेने के लिए तैयार होती.अगर कुछ बंधकों की जान चली जाती तो वाजपेयी सरकार शायद भारतीय इतिहास की सबसे अलोकप्रिय और असफल सरकार बन जाती.
शायद इन दो सवालों और उनके जवाब के बाद आपके मन में कई सवाल शांत हुए होंगे.राजनीति का दौर है तो राहुल गांधी कुछ भी आरोप लगा सकते हैं लेकिन शायद उन्हें ये बताना चाहिए की इन्हीं पूरे हालात में वो किस तरह का रूख अख्तियार करते और ऐसा क्या कदम उठाते नागरिक सुरक्षित भी रहते और मसूद अजहर को रिहा भी नहीं करना पड़ता.अगर राहुल गांधी कोई योजना तक पेश कर दें तो वाकई वो वाजपेयी सरकार के निर्णय पर सवाल उठाने लायक हैं.
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