
जिन मोबाइल टावर को जियो का समझ नुकसान पंहुचा रहे आंदोलनकारी उन्हें पिछले साल ही बेंच चुकी है रिलायंस
पंजाब में किसान आंदोलन के नाम पर एक अलग तरह का ही विरोध सामने उभर कर आया है। नए कृषि बिल के नाम पर जिस तरह से अम्बानी और अडानी ग्रुप कप टारगेट किया जा रहा है, उससे ऐसा लग रहा है की दिक्कत बिल से ज्यादा इन दोनों बिज़नेस ग्रुप से ज्यादा है। जबकि मुकेश अम्बानी की कंपनी का पंजाब या हरियाणा में किसी भी तरह की फसल खरीद में शामिल नहीं है।
पिछले एक हफ्ते से जियो के विरोध के नाम पर पंजाब में 1500 से ज्यादा मोबाइल टावर को नुकसान पहुंचाया गया है। जिससे इलाके में मोबाइल और इंटरनेट सुविधा में दिक्कतें आ रही है। महामारी के चलते स्कूल बंद होने की वजह से ज्यादातर बच्चे घर से ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे है, ऐसे में मोबाइल टावर को नुकसान पहुंचने से बच्चों की पढ़ाई से लेकर, घर से काम करने वाले सभी लोग परेशान है।
इन सब के बीच सबसे हास्यास्पद ये निकल कर आयी है की जियो का टावर समझ के जिन मोबाइल टावर को नुकसान पहुंचाया जा रहा है वो असल में जियो के है ही नहीं। रिलायंस इंडस्ट्रीज जियो के टावर इंफ्रास्ट्रक्चर बिज़नेस को पिछले साल दिसम्बर में ही कनाडा की एक कंपनी ब्रूकफील्ड को 25215 करोड़ में बेंच चुकी है।
ब्रूकफील्ड ने जियो इंफ्राटेल के 100 प्रतिशत शेयर पिछले साल खरीद लिए थे और समझौते के तहत जियो मोबाइल ने अगले 30 साल तक इन मोबाइल टावर को किराये पर इस्तेमाल करने के लिए हामी भरी थी। समझौते के हिसाब से टावर को पहुंचाया जा रहे नुकसान की भरपाई कनाडा की कंपनी ब्रूकफील्ड को करनी होगी।
कनाडा के प्रधानमंत्री ने आंदोलन का समर्थन करते हुए शुरुआत में ही बयान भी जारी किया था। कनाडा से संचालित होने वाले तमाम खालिस्तानी संगठनों ने भी आंदोलन को पैसे से लेकर सोशल मीडिया हर तरह की मदद की है। फिलहाल जियो टावर को नुकसान पहुंचाने की नीति उलट ही साबित हुई है।
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